बेड़िया भितर है, बाहर छटपटाहट है
पाणी है और प्यास भी, अटपटाहट है !
‘लोग क्या कहेंगे’ की जो एक दिवार है,
तोड दे, तेरी खुशीया उसके ही पार है |
- रुपेश घागी
(३० मई, २०१९)
(Photo Credit: https://unsplash.com)
बेड़िया भितर है, बाहर छटपटाहट है
पाणी है और प्यास भी, अटपटाहट है !
‘लोग क्या कहेंगे’ की जो एक दिवार है,
तोड दे, तेरी खुशीया उसके ही पार है |
(३० मई, २०१९)
(Photo Credit: https://unsplash.com)
मिल, खुल के मिल, फिक्र मत कर,
मुलाकात का कहीं जिक्र मत कर,
जो भी है दरमीयाँ, कोई नाम ना दे
दुनिया पे छोड, खुद इल्जाम ना दे !
– रुपेश घागी
(२९ मई, २०१९)
(Photo Credit: www.pixabay.com)
जब कांच से ज्यादा आईना चुभता है,
जब शब्द से ज्यादा मायना चुभता है,
तब खामोशी से खुद को टटोलते है,
खुद से मिलते है, और कम बोलते है !
(२८ मई, २०१९)
(Photo Credit: www.pixabay.com)
शुन्य में नजर और मुखपर मुस्कान है
वह अचल है, समय का इम्तिहान है,
एक अवस्था, अस्वस्थता के पार की,
अंतर्बाह्य शुन्यता के संपुर्ण स्विकार की !
– रुपेश घागी
(२७ मई, २०१९)
(Photo Credit: www.pixabay.com)