May 28, 2019May 29, 2019 by Rupesh Ghagi अंतर्मुख Poetry Leave a comment जब कांच से ज्यादा आईना चुभता है, जब शब्द से ज्यादा मायना चुभता है, तब खामोशी से खुद को टटोलते है, खुद से मिलते है, और कम बोलते है ! रुपेश घागी (२८ मई, २०१९) (Photo Credit: www.pixabay.com)